हे म्हारै मुरधर रा
मीठा अे माणसिया!
सदा मानखै री
मिजळी मनगत नै
अंधारै री ओगत नै,
हटावण सारू
हर हीलै थनै
मिनखापणै रौ मोल
हर जन नै
समझाणो पड़सी।
मानखै-मानखै रै मन भेद नै
उण रै बिचाळै मतभेद नै
मिटावण खातर
थनै हर किणी रै हिये में
हेत रा हबोळा भरणा पड़सी,
सब रै मन नै हरसावणो पड़सी।
मिनखापणै री नीति सूं
रूड़ी रावळी रीति सूं,
अंतस री ऊजळी आस रै पाण
वां रौ आंगणियो सरसावणो पड़सी।
आज इण दुनिया रै
खळबळीज्योड़ै दरियाव में,
काळ जोगै कुबधी नै
आंतक मचाती मछलियां नै
छेकड़ पकड़ण सारू
जाळ न्हाखणो पड़सी।
हे म्हारै मुरधर रा
मीठा अे माणसिया!
थनै आज रो बगत देख नै,
परायां री परख पेख नै,
चीलै-चीलै चालणो पड़सी।