आजे है हकरत

पूरी थाए तमारी

मन नी हसरत

सुड़ी दो सब धतंग

मस्ती थकी उडाड़ो पतंग!

खो ने खवाड़ो तोल पापड़ी

सलावो आपड़ी आपड़ी साकड़ी!

हूरज़ उतरायण में साल्यो आज़ थकी

धीरे धीरे सर्दी घटेगा ने गरमी वदेगा

बारते फरवु करवु हदेगा!

टाड-टाड करी ने सुरं आजे निकळ्यं हैं बाण्डे

उडाड़ी रयं हैं पतंग

सब नो अलग-अलग रंग

अलग-अलग ढंग

कई ओक आपड़ु-आपड़ु पतंग उडाड़वा में खोवाई ग्यो है

कई ओक बीजा नं पतंग काप्पा में गोवाई ग्यो है!

मोटा-मोटा आदमी

वगर दुरा नी पतंगे उडाड़ी रया हैं

केनेक लडाड़ी रया हैं

तो... केनेक वगाड़ी रया हैं...

उडाड़ो सब पतंग

पण, करो नके केने अे तंग

हंगळा अे, वायँ मोरे भाळता रेजु

आपड़ी-आपड़ी दुरी हमबाळता रेजु।

स्रोत
  • सिरजक : कैलाश गिरि गोस्वामी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी