कमाड़,
खड़की,
नै थापड़कं ने
होंहराहूरी आवतू हैरू
मात्तर अैरू नती
अेक आस है
अेक विचार नो उजास है
के
आणा घूप्प अंधारा मयं म्हूं अेकलौ न्हें हूं।
नदी
बाप-दादं अे जे आली अती म्हनै
म्हूं आली न्हें सकूंगा
आपड़ी नवी पीढ़ी ने
मात्तर तोड़ी न्हें है म्हैं
नदी नी धारा
अेक सनातन सभ्यता नी कड़ी भी
वखैरी नाखी म्हैं।
गांम
अल्के गांम ग्यौ अतौ
आलीसान घर
ततकतं छेतरं
टी.वी., फ्रीज, मोबाइल
हुं न्हें अतु
बस म्हारू गांम न्हें अतु
टैम ना टोटा
उंणियारा खोटा
स्हैर बणवा उतारू
गांम म्हारू
बेलगाम थईने
अगाड़ी वधी ग्यु अतु
लाग्यु के म्हूं पछाड़ी रई ग्यौ।
खेतर
जारै बीज खावा मांड्यु
खेतर
म्हैं पूछ्यु, ‘अैम कैम ल्या?’
खेतर बोल्यू...
म्हूं तौ तारी भूख बल्ले अतौ
तारा पोसण बल्ले अतौ
तारा पोसण बल्ले
जारै तू भूली ग्यौ
जरूरत नै लालच नो फरक
पोसण नै सोसण नो फरक
तौ हुं करूं?
म्हूं वांजुवो थई ग्यौ।