हे ऽऽऽ भगवान

मारें मावितरंए कइया जनम नु वैर काड्यू

कै मनै

मास्तर नै परणावी।

एक दाडो मैं क्यू कै

पटवारी नी घोर वारिए।

आजे पोलीस्टर नी हाडी पेरी ती

तो तरत केवा लाग्या कै,

पोलिस्टर थकी तो चर्म रोग थाय

आपडे तो एवी हाडी नती लाववी

जेने पेरी ने रोटला करं

तौ बरी मराय।

मै क्यू के सब नवी नवी हाडिये पेरी ने नेरें

मुं आणं फाटं लबरं में लाजी मरूं

हामरतं में केवा लाग्या के

आवतो मइनो दीवारी नो है

सेतर 40 टका कमीशन ऊपर मलेंगा

नै जोजे मुँ एक हाडी लावूं के नती लावतो।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : देवी लाल जानी ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादनी बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण