म्हूँ आपणा भीतर
एक अँधारा खूण्याँ में
लकड़ी की कुडसी पै बैठ्यो पाऊँ छूँ
आपणा गुरुजी नै
धारीदार झूलती आधी बाँहाँ की बूसट
पतली काळी बेल्ट सूँ बंधी ढीळी पेंट
गळा में रस्सी सूँ बंध्यो काळा मोटा फ़्रेम को चस्मो
अर बूसट की जेब में लाल-काळा पेन
वाँ की रौबदार आँख्याँ जस्याँ
देख री होवै म्हारी सारी करतूताँ
जस्याँ वाँ कै हाथ को डंडो उठबा ई वाळो होवै
म्हारी एक चूक पै
वाँ को ध्यान चूकता ई
म्हूँ सरारत कर बैठूँगो
ई लेखै वाँ की नज़र म्हारै पै ई रह छै एक टक
तीन बरस को छो
तब सूँ वै म्हारै ताँई सीधी लेण खाँचबो सीखा र्या छै
आज उनतीस बरस ताँई कैई ग़लत लेणाँ खाँच’र मिटा चुक्यो छूँ
कैई डंडा खा चुक्यो छूँ
पण म्हारै ताँई यक़ीन छै
अगर वै रह्या म्हारै साथ म्हारा भीतर
म्हनै एक टक देखता
तो एक दन सीख ही जाऊँगो
सीधी लेण खाँचबो।