‘गुवाड़ी’ जकी जाणीजै
बाखळ अ’र चौक रे नाँव स्यूं भी,
जकी जाणीजै
परिवार रे बडेरा मिनख
रे नाँव स्यूं भी,
गुवाड़ी जकी रे लारै चालै
मिनख रौ नांव,
के आ है
फलाण जी री गुवाड़ी।
अ’र गुवाड़ी रै
उठणै रो मतळब है
उठ ज्याणों मिनख रे नाँव रो हरमेस
री खातर।
आ कैणो के
उठगो फलाणे रो नांव गो,
उणरौ ओही’ज अरथ है
के उठगी उणरी गुवाड़ी
नीं रिया उण गुवाड़ी सरा धणी,
नीं सुणीजै उठे
टाबरां री किलकारियां,
नीं रैयो उण गुवाड़ी में
कोई तिरसा बटेऊ ने
पाणी पावणियों भी।
गुवाड़ी ही
मिनख ने बणावै मानीजतो,
अ’र गुवाड़ी ही बणा दे अणपूछ।
जद ही तो बडेरा केंवता
के हे किरतार...
साईं सेती राखजे
म्हारी ईं ‘गुवाड़ी’ ने।