म्हारा बडेरा

दादा-पड़दादा थरपणा कीधी-घुड़लो।

उणां रै डील मांय आवता हा

म्हारा पितरबावजी, सतीमाताजी,

झूंझारजी, सगसजी कै भैरूंजी

दोन्यूं जणा नैं।

उण साचा समै,

आगली-पाछली बात, बिचार,

चेतावणी, आदेस अर आसीस देवता।

म्हैं बूझ करावता

घर-गिरस्थी रो दुख-दरद

कळेस, रोटी, रुजगार अर

बंस-बधोपा री अरदास करती

म्हारी मा अर बापू।

पण अबै भई

न्यारा घरां रा न्यारा बारणा!

नूवा विचार, नूंवा मिनख री

अणूती बातां-कुतर्क अर भसवाड़

बाजै फाटक, कुंदा अर किंवाड़।

श्राद्धपख अर अमावस मांय

धूप ध्यान, दीयाबाती

पितरां रै नांव रो रातीजगो देवणो

पाटोलो भरणो, स्नान-ध्यान, धूप

आगलै दिन जीमण करणो।

कळजुग मांय

अब नूंवो घुड़लो

खालीमाली माथो हलावै

आसूं-आसूं, सीटी बजावै

कूंदै-फांदै, उचक्कै,

खालीमाजी खेलै अर बेलै

अर पकड़ावै आखा-भभूत।

किण-किणी री देवूं म्हैं अरजी

आबा वाळा नै वो कैवै सगळी फरजी

पितरबावजी सांमी नीं चालै आपणी मरजी

म्हूं रैयग्यो भाया जात रो दरजी।

अरे पितरदेव!

आप म्हारै वास्तै हो साचा!

अर घणा हो आछा

म्हारा बेटा अर पोता दीज्या

म्हांनै गंगाजी मैतरपण करावजो

पिंडदान, श्राद्ध, बरसी, सगळा जतन करज्यो।

अरे घुड़लो जी,

पितर, सती, दिवाड़ी रै नांव पे

मती करो कोप, गाळी-गलौज

डाफाचूक करणो, म्हनैं नीं सुहावै

आवळ-कावळ बोली काळज्या मांय नीं मावै।

घुड़ला सूं बत्ती मूरत नै साची मानजो

डाफाचूक करणी बोली नै छोड

आसीस पावण री जुगत राखजो

भई सबको आपणो-आपणो बिसास अर श्राद्धा है।

चौरासी लाख जूण सूं जीव भटकै

अकाळ मौत सूं मरबा आळा भटकै।

कंप्यूटर, इंफोर्मेशन साइंस टेक्नोलाजी

आतमा-पितर नै मानै बकवास

कळजुग मांय इंटरनेट, ब्लाग, टिवटर, फेसबुक

ईश्वरोपासना नै नीं मानै अस्यो म्हारो बिस्वास

अरे मूरख मिनखां

आपां रा बाज दादा, परदादा हा

जद तो आपां

इण दुनियां मांय आंख्यां खोली

आपां कांई आसमान सूं टपक्या

अर खजूर मांय तो नीं अटक्या!

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोक चेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : श्यामसुंदर टेलर ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ