म्हारौ बाळपणो
गांव री गळियां में
खुले खेतां में
घर री उण
मोटौड़ी बाखळ में,
ऊनाळै रा चालती
आंधी अर लू में,
खुले आभै में बीत्यौ।
पीवता गाय-भैंस
अर
सांयढ रौ दूध।
जीमता छाछ राबड़ी
छिला माथै
बाट्योड़ी लीलकी
मिरचां री चटणीं,
खावता
मोटां रा खाखरिया।
जद गांव छोड़’र
आयौ हो
पैली बार
स्हैर तो देखी
स्हैर री तंग गळियां
सड़कां माथै
चालती गाड़ियां
उण सड़कां नै
पार करण सारुं
घणी जैज होवणो पड़तौ
आगौ–पाछौ
नीं देखी कदैई
इतरी गाड़ियां
एक साथै दौड़ती,
हूँ तो गांव सूं
छोड़’र आयौ हो
ऊंट गाडो अर
बळदा छकड़ी।
कठै स्हैर में वो
गांव जैड़ो मिनखपणो
कठै वा गांव जैड़ी
साफ सुथरी गळियां
कठै वो गांव जैड़ो
बाळपणो।
कठै वो
गांव रै चौवटे री हथाई?