गांव रै गुवाड़ में तो, गीगलै रा गीत है,

कूवो पूजै जाम्यां, मर् ‌यां हरजस री रीत है।

भाग पाट्यां पैलां जठै लोग जावै जाग है

आवण वाळै आयां पैलां, बोल जावै काग है

मस्त होवै बिना पंखै दरखतां री हेठ है

घबरावै नीं सर्दी बारस पौह भावें जेठ है

दिन रात बेफिकरी में आंरो ज्यावै बीत है।

गांव रै गुवाड़ में तो ले’र आवै भातो

राबड़ी है ठंडी तो है रोटी-साग तातो

गांव रै गुवाड़ में तो मोकळा है मतीरा

जान जीमै धाप-धाप, भात ल्यावै बीरा

गांव रै गुवाड़ में तो सिट्टा मिलै सींत है।

हारै में काढावणी है, डांगरां री टोळ है

खेत आंरा लंबा-चौड़ा घर री मोटी पोळ है

छाछ मांय चूर’र जीमै, बाजरी री रोटी

होको गुड़गुड़ावै बैठ्या बिठावै है गोटी

भेदभाव भुला’र सारा बण्या रवै मीत है।

रोग मिट ज्यावै दाब्यां धरण अर कोड्डी

मैनत करै रात-दिन, घुटाई राखै भोड्डी

झाड़ो लाग्यां झड़ ज्यावै, पीळियै रो रोग

कष्ट काटै मादळिया, ताबीज, डोरा, भोग

गोबर रो है गोरधन, बाड़ां री ही भींत है।

कूवै री सारण जट्ठै लाव बड़ी लांबी

कीड़ीनगरो खुद बण ज्यावै, सांपवाळी बांबी

गांव रै गुवाड़ में जोहड़ां री ऊंची पाळ है

ब्यावां में लाडू रै सागै, ‌अै खुवावै गाळ है

गांव रै गुवाड़ में तो गैरी पैठी प्रीत है।

हरदड़ो, गुल्लीडंडो, कुरां, लूणाघाटी

कबड्डी अर पैल-दूज, लुक-छिप, आटी पाटी

ऊंचा-ऊंचा झूला झूल’र ऊभली मचकावै

ढप बजा’र फाग खेलै, नाचै अर गावै

गांव रै गुवाड़ में तो सातूं दिन अदीत है।

मेळा लागै कदै-कदै, तीज अर तिंवार है

ब्याव-सादी, भजन-किरतन, पूजा जीवणहार है

धूप बड़ी आकरी है, पून है सुहावणी

धन्न गांव अन्नदाता बीजै हाड़ी सावणी

गांव रै गुवाड़ रो सोनलियो अतीत है।

खेतपाळ, सेढल माता मांवड़ियां रा थान है

मंदर मसजिद गुरूद्वारै रो अेकसो सम्मान है

विद्यालय है केंद्र ग्यान रा, पंचामुख परमेसर है

गंगाजळ सो बवै पसीनो, धूड़ जाणै केसर है

शांति रो साम्राज्य अट्टै, ना कोई भयभीत है।

अड़वो खड़्यो खेत मांय, राखै है रुखाळी

तीतर पंखी बादळी मंडरावै काळी-काळी

बड़ी-फळी फोफळिया, सांगरी अर काचरी

बेरिया अर कैरिया है, फोग खोखा पातरी

रूखो-सूखो खा’र भी, जीवण रस संगीत है।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत अगस्त-सितंबर ,
  • सिरजक : विद्यासागर शर्मा ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृत अकादमी, बीकानेर