हूं जद लिखी
ओळ्यां चार
चावै ही पढ़ावणौ
पण लोगां
निकाळ्या नूवां-नूवां अरथ
आप-आपरी समझ सारू
साच ई है
चावै जियां जे हुय जांवतो
म्हारौ लिखियोड़ै जे पढ़ियो जांवतो
तो बात ई कीं दूजी हुय जांवती
स्यात बणती कोई रचना
नज्म के कविता
पण लोग चावै ई नीं पढ़णी कविता
आजकाळ तो
जोवे है लोग
आतम-कथावां
देखणा चावै उघाड़ा-बांडा
के कीं मनचींत्यो लाध जावै
अलायदो निजर आवै
चावै देखणौ
जको मन ने भावै
भलांई हुओ नां
कीं भी
काढ़े है नूंवा-नूंवा अरथ
सबदां में लगाय’र कान
सुणीजै उण माथै करै
आंख्यां मीच’र भरोसो
फेर भी लिखूं म्हैं
के काल जद आवेली म्हारी बारी
पढ़िया जावेला म्हारा सबद
तो कोई नीं कह सके
नीं आंवतो हो म्हनै केवणो
साख देवेलो समै
नीं चावै ही कदै स्हेवणो
पण नीं चांवती
के टूटे तागा
इण खातर सबद उकेरिया
के नीं चावै ई उठाऊं
अस्तर-सस्तर
वे
जकां बैवावे लोई
मचावै घमसाण
इण वास्ते म्हारै मन रै घमसाण नैं
सबद-रूप अंवेर
म्हेल दी जियां दादी री गांठड़ी
काल अे ओळ्यां
म्हारी पिछाण हुवैली
इणी अेक आस में
लिखूं हूं
जाणूं हूं काल
काम आवेली दादी री गांठड़ी