सबे मानैं

घांटी मैं बेटा गदेड़ा नै

बाप पण केवू पड़ै

केम के-गरज बापडी है

पण —आणी बापड़ी गरज

डोंगरा हरका आदमी नी

गाज हरकी गरज ने पण

गरवी नाकी है —ने

एणा आदमी ने... आदमी थकी

गदेडू ते ठीक, कुतरू बणावी नै मेल दीदो है

गरजाऊ आदमी....भूकड़ा कुतरा वजू

टुकड़ा नी पोमर पसाड़ी

पोंसडू हलावतो फरै

ने एणा टुकड़ा पसाड़ी आपड़ा घोर नी

भेंते खोतराबा लागी ग्यो है।

जारे के...कुतरु पण

जेणा घोर मै खाए एनू तै वजाड़ै

ने आ...कुतरु बणेलो आदमी

गरज बापड़ी करी नै

बापड़ो बण्यौ....

गरज मटी ने घांसी ने गुदें ने सोर लई जाजू

केवा वारो

कै रई ग्यो है...असल में आदमी...

कै रई ग्यो है...असल में आदमी...।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : घनश्याम प्यासा ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादनी बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण