हीमाला की गोदी सूं आई।

उछलती कूदती कलकार्यों करती।

भलाई की पोटली माथै धर'र।

बाप नै बेटी मुकलाई।

बाप बोल्यो- बेटी तू म्हारी बेटी छै।

आण रखाण ज्ये, पोटली'क

अर थारै जनम भर को साथ छै।

को अन्त'र थारो अन्त जाणज्यै

बेटी बाप की आण रखाणती।

मस्ती करती, छाती फुलाती,

चालती जाती, चालती जाती, चालती जाती

सेवा करबा मं वा बाप सूं बी

दो तल आगली खड़ी

सगला नै हऱ्या-भऱ्या करती।

तरखा बुजाती, उजालो करती।

सेवा की पोटली ने खाली करती जाती।

खाली करती जाती, खाली करती जाती।

ज्यां ऊं की पोटली होगी खाली।

व्हां नै समाधि लगा ली।

पण ज्ञानी, ध्यानी वहाबा हाला मनख्याँ नै।

ठौर-ठौर गन्दगी सूं ऊं की आरती उतारी।

हाय रै प्रतिदान देबा हाला मनख।

थारी बलिहारी, थारी बलिहारी, थारी बलिहारी।

स्रोत
  • पोथी : भात-भांत का रंग ,
  • सिरजक : कमला कमलेश ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन