बोलण-सुणण, ओढ़ण-पेरण
अर चाल-चलण में
बो पूरो गाँधीवादी लागे हो
गाँधी जयंती सारू
मांडण बैठ्यो
आज सिंझ्या बो कविता
कविता ताबे आज्यै
किसी पोल पड़ी है
छेकड़ कलम फेंकतो थको
भींच'र जीरड़ी
बड़बड़ायो—
'ईं गाँधी रै
लागो बास्ते रो खीरो
कविता ई
बक में नीं आवै रांडगी'
आ बात सुणनै
हाथां में पिस्तौल लिया
बींरै अंतस में बैठ्यो गोड़से मुळकै हो।