ठेट नंन्नण, गौरां रै घरै

पढतां पढतां आई अक्कल

गुलामी री गुळगांठ खोलणी,

इन्याव रा वैहता वाहळा नैं रोकणौ

भारत रा मांयला मन सूं

डर रौ डाकी बारै काढणौ

नांमी अस्तर सस्तर रा राज नैं

गैडी रौ गरौ बताणौ

आखी दुनियां में

गौरां रा डर नैं भांगवा,

करियौ खैंकारौ

टांकिया खौळा,

चेतिया भारत रा अणभणिया भौळा

अंग्रेजां रा अखी राज रै खै सारू,

बजायौ शंख,

वसुधैव कुटुंबकम रै कारण

ऊठाई सत्याग्रै री सांग

वगत री पकड़ी नश,

बाबौ अफ्रीका में जाय अड़ियौ

गौरां रौ गीरबौ गाळवा,

डोकरियौ झाली,

सत्याग्रै री डांग

बाबा रौ डी'ल-डांग तौ हळका,

संकळप सैंठौ धारियौ

अटळ आडावळ ज्यूं अड़ीखंब

सत्यमेव जयते सत्यमेव जयते सत्यमेव जयते

धरती ज्यूं थापन सांच'क

सांच नैं कोई आंच नीं आवै

सांच समै री समझ में आवै ,

सांच समै नैं समझावै

केई राज आव…!

स्रोत
  • सिरजक : राजेन्द्र बारहठ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी