सुण,
म्हैं सुणावू,सुण
म्हारै बाथ घाल्यां
पसरियोड़ी
जूंझ जुड़ती प्रीत री पंपोळ
थकेलौ तोड़ती जावै
सुहावै
भरै मन प्रांण सांसां
झाल-जल सैंजोर प्रगटावै
औ सुणावूं, सुण।
आघा
घणा आघा सुणीजै साफ
वांरा
नौपत, नगारा, चंग
मुदरा सुरां रौ संसार पसरै पून
सुरोसुर अंतस उतरतौ जाय
म्हारै मांय।
रंग, उण साजिन्दगी नै रंग।
वांरा सुर—म्हारी बात
म्हारा सुर—वांरी बात
दोनूं अेक व्हेगा सुण!
ले, म्हैं सुणावूं सुण!
वां अदीठां बाजती जंजीर
वां फरमान रा ठरकां उपजती ‘उफ्’
वौ ‘धैं’ कर पड़तौ-बिखरतौ
मिनखियत रौ रूप अर
सगळा सुरां नै चीरती
उण चीसळी नै सुण!
वौ अध-उघाड़ौ डील
अर मुख
सळवटां सूं उमर रौ अंदाज देतौ
वौ नींद रौ टसकौ
वौ चिलकती जाग रौ घसकौ
वौ उणरौ
योजनावां रै सकळ आधार सामी
ऊभणौ अर छेह लेणौ
काळूंस रौ बण जीव अर अंधार नापंतां
कठैई किसी मारग वौ
थांसूं ईं मिळ्यौ व्हेला
थै गिण्या उणरा घाव?
पूछ्यो हो हाल?
करी ही दो बात?
अबै ई किण हाल में है देख
लड़ै कठै, कीकर
अर किणां सूं औ जांण!
जूंझ रौ अेक इतिहास रचियौ उण!
लै, म्हैं सुणावूं, सुण!