धोळै पानै जियां हूं,

म्हारै माथै आखरां ज्यूं

आई छपी थूं।

बातां रा रागोिळया घालता हा,

कदैई बिछता हा

बाळू माथै चांदणी ज्यूं,

पण कांई होयो अैड़ो

कै नीं छपै,

नीं बिछै थूं...

अर म्हैं रैयो कठै

धोळै पानै ज्यूं।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : विप्लव व्यास ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ
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