रोज हवारै

भेत मातै टंगेलो तम्बूरो उतरै

नै एनी बदनसीबी नु गान

घेरै घेरै करै

नै वजाड़वा वारा नै

अलावी दै, आंतडियं नी खौराक

एक वाटली आटो।

कबीर नं निर्गुणी भजन

सगुणाई जएं

गावा वारा नै गरा मएं

हाम्बरवा वारा ना कान मएं

नै बे नै बेसै

बन्दाई जाय एक वाटली आटा नो रिस्तो।

बजारी भीड़

नती आवती एना बकाब्बा मएं

भीड़ मुडं

धरती मातै जगा हौदवा मएं

आन्दरं बैरं नै बोबडं थई ग्यं हैं

नै पोग हूंजी नै

कइयाक भविष्य नी

जन्म पत्रिए बणावी र्या हैं

तोय तम्बूड़ो कै कै—

अवै त'आ जीवणी

विजरी नो वैजणो

के विजरी नो रेडियो, टेलिविजन

कै सक्की बणी ग्यू है

कौणेक पारका करंट मएं

जोडायलु

बटन दबाते त’सालू

नै एक बटण दबी जाय

त’बन्द...

एक वाटली आटो

के पांस पईशं नौ सवाल है।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री राजस्थानी कवितावां ,
  • सिरजक : ज्योतिपुंज ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादनी बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण