ईमानदारी
फांसी लगाय ली
पण क्यूं?
औ कोई नीं सोच्यौ
वा तो लाण
काई हुयगी ही
भ्रष्टाचार सूं ........
एकली ई पड़गी ही
सगळा दुत्कारता हा उणनै
किणनै ई वा
नीं सुवावती.......
सगळा उणरौ गळौ
टूंपणी चावता......
दम घुट रेयौ हौ उणरौ
ऐड़ी दरिंदगी मांय
जीवणौ दोरौ हुयग्यौ हौ
करती तो करती कांई
एक दिन हार र
वा फांसी माथै लटकगी
पण उणरै बिना अबै
भलमानसां रौ
जीवणौ दोरौ हुयग्यौ
वै ई आतमघात करण लाग्या
ईमानदारी नै पाछी
जीवती करण सारु....