ईमानदारी

फांसी लगाय ली

पण क्यूं?

कोई नीं सोच्यौ

वा तो लाण

काई हुयगी ही

भ्रष्टाचार सूं ........

एकली पड़गी ही

सगळा दुत्कारता हा उणनै

किणनै वा

नीं सुवावती.......

सगळा उणरौ गळौ

टूंपणी चावता......

दम घुट रेयौ हौ उणरौ

ऐड़ी दरिंदगी मांय

जीवणौ दोरौ हुयग्यौ हौ

करती तो करती कांई

एक दिन हार

वा फांसी माथै लटकगी

पण उणरै बिना अबै

भलमानसां रौ

जीवणौ दोरौ हुयग्यौ

वै आतमघात करण लाग्या

ईमानदारी नै पाछी

जीवती करण सारु....

स्रोत
  • सिरजक : बसन्ती पंवार ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी