दुख कोई दूजो देंवतो तो

दुख रो दुख नीं होंवतो

ना बुसकतो

ना रोंवतो

आपरै रो दियो दुख

आपरो मान

जूण में ढाळ लेंवतो

आपरां रो दियो दुख

अब किंयां पचाऊं

खुद नै कूकण सूं

अब किंयां बचाऊं

म्हैं अहिल्या भी कोनीं

जिको भाठो बण

धरती ऊभ जाऊं

अर पछै बिसवासई कठै

कै म्हारो दुख धोवण कदैई

कोई राम भी आवैला।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 7 ,
  • सिरजक : इंद्रा व्यास