सूखा रो कै हाल सुणाऊँ

सित्यासी रै साल रो।

मानसून तो दगो दे गयौ

साथीड़ो बण काळ रो॥

आथूणा रो बवै बायरो

मौसम बण्यौ बड़ो दुखदाई

म्हीनां सै बरखा रा बीत्या

इन्द्र देव नीं छांट गिराई

आक कैर लीला बण फूल्या

अे अकाल रा लक्षण भाई

एड़ो काल जोयो म्हेंतो

कै वै बिरध सौ साल रो।

सावण होवै हो मन भावण

रिमझिम मन्द फुहार रो

हरी मखमली साड़ी पहर्‌यां

धरती रै सिणगार रो

हींदा झूल रही ललनावां

गीतां री अनुपम रचनावां

सै बातां सुपनो ह्वैगी

जोय बवण्डर थार रो।

अक्सर नदी रेत री बैवै

घर-आंगण सगळा भर देवै

सांझ सकाळै भर-भर तसळां

घरआळी उलीचती रैवै

कदै सड़क पटरी नै ढक कै

बस अर रेल रुकाती रैवै

बीं बखतां रो हाल कहूं की

मंहगाई री मार रो।

भाव कुतर रा गेंहू जितरा

लीली घास निजर नीं आवै

दूध दही घी री नीं पूछो

हमै छाछ रा भळका आवै

मंहगाई सुरसा बण बैठी

जो मूंडो दिन-दिन फैलावै

बिन पानी सब सून अठै

यो आलम हुयौ कमाल रो।

जस तस कर नर काम चलावै

काळ कहर पसवां पर ढावै

गल्यो खाखलो भूख खिलावै

अस्थि पंजर खा बण जावै

निरख-निरख नै राम दुहाई

नैणां आंसू सूं भर आवै

दीख रह्यौ सै जिगां निजारो

पसवां रा कंकाळ रो।

स्रोत
  • पोथी : बदळाव ,
  • सिरजक : गणपत सिंह ,
  • संपादक : सूर्यशंकर पारीक ,
  • प्रकाशक : सूर्य प्रकाश मन्दिर, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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