दूब जिस्यी होवै लुगाई,
लौरावंती, बळखावंती
नाजक नरम सी।
जड़ स्यूं चिपगै रैवे हरमेस
जियां ही उठग लागै ऊँची,
काट दी जावै
पाछी जड़यां स्यूं लगा दी जावै।
नूंवै सिरै स्यूं सीखे फेरूं बा जीवणों,
त्याग करगे फेरूं लहरावणो।
जिती ज्यादा लहराव,
बीती ज्यादा कटती जावै।
बात इती सी कोनी
के त्याग री मूरत है बा,
जोरगी तो आ है के
बार बार कटगे भी,
जड़्यां में बधगी जाव।
दरख्त बणन गी
सिमरथता आळी औरत,
दूब बण इतरावै।
धरती न धानी कर जावै।