मनां अंधारौ मेट मानखां अपणेसा री जोत जगाई

दिवलां थारी जोत सवाई।

भाईपौ भींतां बंट जावै

टाबर बडकां बैर बधावै

सोन चिड़कली गोखां ऊभी,

सासरियै में काग उड़ावै

मान मायतां राख बावळा बरकत ल्यावै बिड़द बड़ाई

दिवलां थांरी जोत सवाई।

परदेसां परणी बिसरावै

परियां रै सुपनां भरमावै

रीत प्रीत री तोल ताखड़ी,

मरजादा रौ मोल गमावै

भूली पड़ै भांवरां, फेरा रात, नैण सूं नैण सगाई

दिवला थांरी जोत सवाई।

राजा सूं पिरजा अणचीन्ही

बड़ै घरां बेटी ज्यूं दीन्ही

गूंगो घाव बतावै किण नै,

आंधां हाथ बंटेरी लीन्ही

भोळा रा भगवान! भंवर भटक्या भूल्यां नै पार लगाई

दिवला थांरी जोत सवाई।

स्रोत
  • पोथी : आंगणै सूं आभौ ,
  • सिरजक : शारदा कृष्ण ,
  • संपादक : शारदा कृष्ण ,
  • प्रकाशक : उषा पब्लिशिंग हाउस ,
  • संस्करण : प्रथम