दिवळै री लौ

कम नीं हुवै

अंधारौ मेटण सारू

दिवळै री देह

अर ताकत नै

अंधारौ जाणै

आपां नीं।

स्रोत
  • सिरजक : दुष्यंत जोशी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी