दिनूगै रो बगत

दो हाथ लीपै हा

गारै सूं आंगणो।

टाबरिया बैठ्या टाली हेठै

ठंडी पून में खेल जचावै हा...

छोटकड़ी लाडेसर

भाजती फिरै ही

फरफुंद्यां* लारै

अर राजूड़ो बणावै हो

गीली माटी सूं घरकोल्या।

खेत री बाजरी रा सिट्टा

मारै हा मसकोड़ा!

टाबर झूमग्या बारकर

बापू रै घरै आवणै रै कोड में...

मिंटां में आंगणो लीप’र

पसवाड़ै होयग्या वै हाथ

हरख पळकै हो

वां हाथां री

चूड़ियां री खणकार में!

हरख-उमाव हाथ आयो

चार सौ कौस आंतरै

दो बरसां री दिसावरी सूं।

*फरफुंद्यां=तितयांलि

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : गंगासागर सारस्वत ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर