मिनख बणण नैं

बापू म्हंनै

गया लेयनै

गांव-मदरसै।

नान्हों हो म्हैं

म्हैं नीं हो

नान्हा ही हा

म्हारा सगळा

संगी-साथी!

आया हा म्हे

मिनख बणण नैं

पण बेंतारी

मार-मारनै

बणा दिया बै

म्हानैं मुरगा!

मुरगा बण म्हे

होड़ा-होड़

दड़बो तोड़

घरां बावड़्या

सागी ठौड़!

पण म्हे डरता

मिनख बण्या नीं

बण्या फिरां हां

ओजूं मुरगा!

दिन उगणै री

आस लगायां

बांगां देवां

सुणै नीं कोई...

दिन म्हारो नीं

दिन है-

बां रो..!

स्रोत
  • सिरजक : मदन सैनी ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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