पेपरां रै दिनां में
किताबां रा पाना पलटतां-पलटतां
आंख्यां में नींद घुळती, पण
काळजे में घुकधुकी रैंवती कै
आज सोयग्या तो
काल कांई लिखस्यां?
फेरूं सोचता कै
सागे हाळी छोरियां
घणा नम्बर ले जासी तो
आपां लारै रैय जास्यां।
सोचतां-सोचतां
मन नै समझावती कै
पेपर हाळो गूमड़ो फूटज्यै तो कांस मिटै
अर पछै निस्संग सोस्यां
पण पेपरां रे बाद
बोई कमरो बोई बिस्तरो
अर बेई म्है
वो ही आंख्यां में नींद रो उचाट
अर काळजे में औजूं धुकधुकी
कै रिजल्ट कै आसी!