म्हनै डूंगराँ का भाटा कै तांई तोड़’र

घीस’र बणा दी रेत

अर रेत नै पीस’र बणा दी धूळ

अर धूळ कै तांई उड़ाद्यो हवा म्ह

काई जाणै या धूल

क्हां जा’र बणैगी गारो

अर फूटैगी म्ह एक कोपळ

अगर या भाटो रहैती तो काई निपजती।

स्रोत
  • सिरजक : किशन ‘प्रणय’ ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी