माटी सूं जलमै .

माटी मांय रमै

माटी रो पूत

किसान तपै तावडै मांय

सैवै सीत

भीजै बिरखा-जळ मांय

संवारै धरती रो रूप

भरै मिनखां रो पेट

धरती रो अन्नदाता किसान

ऊजळो मन

काळो तन

सब सूं राखै हेत

साच री आन

धरती रो सपूत किसान।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : हुसैनी वोहरा ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham