उमर रै उठाव माथै
फळां सूं भस्योड़ो हो रूंख
फूल सौरम पसरावता
फळ मीठो रस चखावता
पण उमर री ढाळ माथै
झड़ग्या स्सै पानड़ा
कोरा रैयग्या ठूँठ
जड़ा होयगी पोली
इंज-बायरा जोर लगायो
ठूँठ धरती होयग्यो
पण फेर ई जिंदगाणी माय
रूंख रो उजळ-पख
सगळां रै निजरै आवै
उण री लकड़ी सूं तो
इमारत ऊभी हुय जावै।