कावड़िया,वीरा
कावड़ नाकै छोड़
थारै कांधै नै उडीकै
अरथी मिनख री
मिनख
जिको उमींदा रो बेथाग
बोझ ढोंवतो
अनै रिंदरोही मांय
अकारथ रोंवतो
मरणगाल हुग्यो
मिनख
जिको दुनियां-झ्यान रा
सुपनां आंख्यां में सजा र
अणचाही नींद सूयग्यो
थारै कांधे नै उडीकै
हो सकै
थारै पगां रो परताप
अर खांधां रो हांगो
अधमरयै मिनख नै
करदै जींवतो
अनै मुसाण होवती धरती री
बांझ हुवती कूख में
भर देवै इमरत कुंड
कावड़िया!
तीरथां सू मुड़
अनै काळ रै जबाड़ां मांय जांवती
जीया-जूण सूं जुड़
मरणगाळ मिनखां री छेकड़ली सासां
थारै कांधा नै उडीकै।