म्हे जांवता

चरावण भेत

परलै खेत

रमता आखै दिन

उडांवता रेत

आंगळयां सूं कोरता

मन रा चितराम!

अब कठै

बै दिन

बो भेत

बा रेत

कठै मांडां

अब लीकलिकोळिया

अब तो ऊभा है

चौगड़दै राखस वरणां

मै’ल माळिया

सुरसा सी सड़कां

अब तो मरग्यो खेत

मन में पसरगी

उथळती बा रेत।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 6 ,
  • सिरजक : हनुमान प्रसाद 'बिरकाळी' ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’
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