रे! रोहीड़ो रूंख, घणो रँगीलो रायबी

नहीं डफोलो डूंख, दुनियांदारी दाव में॥1

मोथा मिनख मगेज, फूल सूंघ फैंकै परा

रख अणमींत अखेज, रोहीड़ो रिसकै नहीं॥2

मिजळा मिनख मलंग, रूंखां कर रटमाळियो

पोढै फड़द पिलंग, रोहीड़ो रेरू लियां॥3

इसड़ा मिनखां माण, कदे करणो कुसम सूं

कद कुबध्यां री काण, राँघड़ रोहीड़ो करै॥4

सौरम फळ सूँ साफ़, सल्लर सन्नेपी निजू

मोफड़दै अर माफ़, रस देवैन रोहीड़ो॥5

माणै फूलां मौज, दूंजा दरखत दोगलां

नटवर, फसैन फ़ौज, कदर कमी रोहीड़ो॥6

सौरम रँग रसबाज, भँवर बाणगुण भगत भल

पण टिकै परकाज, प्रीत रीत रोहीड़ै॥7

रसना राखै नाँव, वास वसै क्यूं विड़दमन

ठाली सरूप ठाँव, रोहीड़ै निज मन रळी॥8

जगत विलासां जूण, वदळ दिलासा कूणद्यै

बिना सोरकै सूण, रोहीड़ै निज रस नवळ॥9

कळी वीणै कोय, राफ टिडा राजी हुवै

लाल लफींडो जोय, रण कंगण रै: रोहीड़ो॥10

फूल सोवणा फूल, वेहद फुटरापै वण्यां

सरस सौरमां भूल, रोहीड़ो राजस करै॥11

दुनियां री, सा: दाय, फूल झूल रँग फूटरै

क्यूं काया कटवाय, राय सांचो रोहीड़ो॥12

रूपक, उपमा राज, नरां निरगुणा कारणै

रोहीड़ो रँग-बाज, गै’र गँभीरो गारडू॥13

गायड़ गूंझी ग्यान, गोपीलो गैकां तज्यो

गुम्मर में गळतान, भगवत् भजनां रोहीड़ो॥14

फूलां रै फळ राग, विरखां नै विरवाळना

तेवड़ तसियो त्याग, रुळपटियांज रोहीड़ो॥15

वागां तोड़ बगाय, खोड़ां खोड़ खिंडायद्यै

सूक्यो नोज सराय, फूल रदील रोहीड़ो॥16

मारग पड़ मुरझाय, फूल फंफेड़ी खा रिया

उदस करै कुण आय, रँग रळकवै रोहीड़ै॥17

गरजां गेड़ा काट, फूलां बिन फेफी चढै

मन मैकारां लाट, रोसी सौरम रोहिड़ै॥18

रँग थारै रैवास, रोही रैणो जाणियो

फबी फूलां वाँस, रगतां वरणी रोहिड़ा॥19

पुसबां रूड़ो रूप, लाल कसूमा कुचरबो

गुणां अडोल अनूप, राजो अवछळ रोहीड़ा॥॥20

वन में रवो विलूम, खोड़ां परभोमी खड़ा

विन समढै सूं सूम, रैबारी वण रोहिड़ा॥21

आथण दिनँगे ओप, जंगळ-मंगळ माठ सूं

गळ वेलां री गोप, रिजक रायवर रोहिड़ो॥22

रात्यूं पोरो राख, भाख फाटतां भूलणो

लाख-लखीणी साख, बिना रकीनै रोहिड़ो॥23

काया सूकी काट, काठ तणी चीजां कुरै

पोळी चौघट पाट, फबण फूटरी रोहिड़ां॥24

जोड़ी जोड़ किवाँड़, पागां ईसां पिलँगड़ां

रोहीड़ां थां पाड़ गुडली, गाडां चरखलां॥25

दरपण कलमीदान, सीब्यां साँवळ चोखटां

मेजां, खुरसी खान, राच मजीठी रोहिड़ै॥26

अन्तरदान उडेल, अलतां पेई पेवट्यां

छाल रोहिड़ां तेल, चरम रोग सै:चाटणो॥27

रूंखां रातै रूप, वसतां वसत वडेर सूं

भलां खेतड़ां भूप, रोहीड़ो रुत आगळो॥28

कोकळ दुनियां काय, फूल विलूमै रस पियै

रोहीड़ां कद दाय, गधियां खेत खुवावणो॥29

सींथळ रा सैंतर, किरूं रूखं काळू रचै

धरा धरम री सीर, भट भड़भोकै रोहिड़ो॥30

चीज रीज रिजनास, ‘काटी’ कोरी किसब घड़

लकड़ी हाल हिवास, लोक लुभावण रोहिड़ो॥31

रूंखां दीखत राव, डाव देवै देवणै

सोरम सूका साव, फूल रंगीला रोहिड़ै॥32

मारवाड़ री माठ, अन-धन जीव जिनावरां

ठगां प्रकरती ठाठ, रंग पुसव ठग रोहिड़ो॥33

दुनियाँ गरज दिवान, हाथ जोड़ हुरकै अरज

किसो करै है कान, रस-कस लिन्है रोहिड़ां॥34

वेस वदळवै वास, रूपक रूप वणावणै

तेरै कुणसै: तास, रास विहारी रोहिड़ा॥35

रूड़ै राजस्थान, रँग थाँरै रातै रँगा

सकळ करां सम्मान, रीत प्रणामी, रोहिड़ां॥36

रोहीतको रोहीतको रोही दाडिमपुष्पक:

रोहीतको प्लीहघाती रुच्यो रक्तप्रसाधन:॥37

स्रोत
  • पोथी : दस दात ,
  • सिरजक : साहित्य महोपाध्याय नानूराम संस्कर्ता ,
  • प्रकाशक : लोक साहित्य प्रतिष्ठान, कालू-बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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