दरद

थूं मत जाग, रे मत जाग!

होळी-होळी पीड़

ऊंडी चुभण-आ अणकैयी

घणी-घणी घुटण

तड़फा तोड़े जीव,

पण मत कर थूं परवा

सूतौ रै चुपचाप

ज्यूं राख ढक्योड़ी आग

दरद-थूं मत जाग!

थपक्यां दूं हौळे-हौळे

झूठी-सांची लोरयां गाऊं

थारै

रेसम रा अणगिणती केसां में

हौळे-हौळे आंगळियां फिराऊं!

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : बी. आर. प्रजापति ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी