घर में अेक कांनी

दादीसा रौ कमरौ

दादीसा कैवै उणनै

आपरी हवेली!

हवेली मांय दादीसा री दुनिया

गीता-रामायण बांचै

करै पूजा-पाठ, फेरै माळा

सुणावै ग्यान री बातां

पोता-पोतियां नै

देवै घणी-घणी आसीसां

म्हारा दादीसा

म्हांनै चोखा लागै

वै अर वांरी हवेली।

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : उगमसिंह जागरवाळ ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा