सगळी अबखायां
अर अणूतायां रै
व्हैता थकां भी
म्हारी आंख्यां
अवेर सकै है रूप
खेत अर रेत मांय
बिखर्योड़ी
सड़क अर पगडंडी माथै
सूरज रै सागै भागतौ
अर तारा रै सागै जागतो
नुंवौ अबोगद सरूप।
आज भी म्हारा कान
रच लिया करै है संगीत
साव सून्याड़ मांय
सुण लेवै है सबद
जिका अठा सूं वठा तांई
तिरै है बायरै में
जळभाछ री भांत
चाय री गुमटी माथै
झांझरकौ उळीचतां
अपणायत सूं सराबोर लोग
बातां करै सुख-दुख री
पीड़-पाटे री
तो म्हानै लागै
इण सूं बेसी महताऊ
कविता कांई व्हैती व्हैला?
अे सै जणां उड़ जासी
जाणै चिड़कल्यां
आप-आप री
रेलां-बसां में सवार
दाणै-पाणी री तलास में
वांरै चेहरा माथै
उमगतौ अकूत आणंद
रै जासी गुमटी री
टूटी बैंच माथै
बांच्योडै़-अणबांच्यै
अखबार सरीखौ
कदै थिर
कदै अथिर
सिरजण रै पळ ज्यूं।