आपरी अनुभूतियां नै अंवेर

आकरै आवेग रळकूं

आपरै भावां अर विचारां सूं

थटाथट भरियोड़ौ म्हैं

सावणियै री झड़झिल्यां

ज्यूं पाटा-पाटा बैवती

उफणण ढूकै नदियां

कै

तेज आंच रै बूतै

देगची में उफणण ढूकै

चूल्है चढियौ दूध..!

उफणूं अर उफणूं म्हैं

आपरै मन रै वेग

उड़ाण भरतोड़ी अटकळां

जूनी सूं जूनी चितार अर

जथारथ री

ओप अर आब लियां

आखरां रचीजतौ...

अेक ओपतै उणियारै

अभिव्यक्त व्हैतो म्हैं

वेमाता रै बांनै

रूप-रंग घड़ियां उपरांयत

थुथकारौ न्हांकतौ

उण मा री गळाई

जिण अजुणाई आपरै जापै

जायौ है गीगलौ-

कै नीं लागै खुद आपरी टोकार

रैय-रैय थुथकारौ न्हांकती थकी

चुंगावै आपरा हांचळ!

उण कुंभार री गळांई

जिकौ आपरी चाक

माटी रौ लूंदौ चाढ

घड़ लियौ है

मनचींत्यौ ठांव

साकार करण आपरै सुपनां नै...

इण आस रै ओळावै कै

म्हारै सुपनां री

भाव-अटकळां

म्हारै ज्यूं राचै

म्हारौ पढाकौ

म्हारै सिरजणां रै रूप-रंग

मन अर देही रीझ्यौ!

इणीज गत टुग-टुग भाळतौ

फेरूं-फेरूं थुथकारौ न्हांकतौ

फेरूं-फेरूं रीझतौ

आपरै सिरज्योड़ै आखर-आखर नै

बांचूं म्हैं

विचारतां कै-

म्हारै पढाकां री पीढियां दर पीढियां

राचती रेवै म्हारी भाव देही

आपरी अटकळां री उडांण भरतोड़ी

आपरै सुपनां नै थेपड़ती

चितार उतरी-

आपरै अंतस रै फूटरापै रा

पगौतिया चढती-उतरती

आपरी सोजी री खोह

पसरियोड़ै अंधारै नै अलोचतोड़ी

आपरी मान-मरजाद नै आपरी

भाव-देही नै मन अर विवेक री

चाकड़ली चाढ

अेक ओपतै उणियारै ढळती!

म्हारी सिरजणा री इण

चिणग्यां रै पळकै

आपरी जीवण राह अर

कराळ दुख-संताप रै

परबतां नै उलांगती

धर मजलां धर कूचां

बगतां-बगतां उण रा पग

अपड़ लेवैला आपरी मंजल रौ गेलौ

अेळी नीं जावेला उणरी मिनखाजूंण

इण बात नै अंगेजतां कै

मिनख नै मिनख बणायौ राखण सारू

सिरजण घणौ जरूरी व्है..!

म्हनै अभिव्यक्त व्हैतौ रैणौ है।

स्रोत
  • पोथी : मुगती ,
  • सिरजक : मीठेस निरमोही ,
  • प्रकाशक : मरुवाणी प्रकाशन, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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