इण दिनां

घणौ सोरौ है

कवि बण जावणौ

कविता में करणी

क्रांति री बातां

राजनीति रै ढोल री

खोलणी पोल

भ्रष्टाचार ने देवणी गाळियां

अफसरशाही रो उधेड़णौ

अंगरखौ

घड़ी-घड़ी गावणौ

आम आदमी रो बिखौ

सबदां री खूंटयां माथै

आदर्श टांकणां

किसान-मजूरां रै

सोसण रा बैण उचारणां।

कवि अर क्रांतिकारी

जाणै सोने में सुगंध

करावणौ अभिनंदण

पोथ्यां रौ विमोचण

नांव कमावणौ

इण दिनां घणौ सोरौ है

कवि बण जावणौ।

इण दिनां

घणौ दोरौ है

कविता सिरजणौ

कविता सारू

बारै नीं

मांहै झांकणौ पड़ै है

संवेदणा री लपटां में

सबद ने तपावणौ पड़ै है

फेर इण लाल सुरख

हुयोड़ै सबद री झाळ

झेलणी पड़े है

कितरा दिन

महीनां-सालां

जद कठै बणै है

कविता री अेकाध ओळ

अेक-अेक सबद रै

पुसब सूं जद तांई

नीं कढै अणभूति री सुई

कद बणै कविता?

इण दिनां

घणौ दोरौ है

अेक आखी कविता गूंथणौ।

इण दिनां घणौ

सोरौ है

कवि बण जावणौ

इण दिनां

घणौ दोरौ है

कविता सिरजणौ।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी साहित्य रा आगीवाण: भगवती लाल व्यास ,
  • सिरजक : भगवती लाल व्यास ,
  • संपादक : कुंदन माली ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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