आओ रे! साथीड़ा हिल-मिल, खेलां गुल्ली-डंडा।

देसी खेल सस्तो सुंदर, तुरत फुरत में खेलो।

गड़लो छन में गुल्ली-डंडा, सबनै पाड़ो हेलो।

गुच्छ खोदलो दूरी खातिर नापो रे पावंडा।

आओ रे! साथीड़ा हिल-मिल, खेलां गुल्ली-डंडा।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुणियोड़ी ,
  • सिरजक : मोहन मण्डेला ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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