खरूंट भलांई उतरग्यो

पण अजेस बाकी है

घाव रो अैनाण

अर स्यात सदीव रैसी।

घाव भरीज जावै

पीड़ मिट जावै

पण कदै नीं मिटै

घाव रो निसाण

दुनिया नै नीं पण

जिण झेल्यो है जखम

उण नै तो आखी उमर

निगै आवै निसाण रै मांय

जखम देवण आळै री छिब!

स्रोत
  • सिरजक : संजय आचार्य 'वरुण' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी