पूठ लारै हाथ बांध

उणनै छोड़ राख्यो है खुलो

चाखण नै, चाटण नै

खूंटी माथै लटक्योड़ी जरूरत

जीभ सूं।

सुवाद-बेसुवाद री भौमका

पाथरीज्योड़ी थैह

उणरै भेजै तकात भूंवती बातां

आभै रै पाट चलायोड़ी फिरकली री गत

खाली भूंवणो अर भूंवणो बस!

छिणैक री बिसांई का संतोख

फगत जीभ भर सूं चाखण में

उणरो निजू है

हितां री रूखाळी री बात समझणी

उणरै खातर घणी अबखी

उणरा सैंग संवेदणशील अंग कारज विहूण

समझै तो समझै कीकर।

अर अठीनै

जरूरत लम्बी हुंवती जावै

जमीं री बजाय आभै कानी

जरूरत रो खेंचाव उळटो हुय रैयो

पण जीभ है कै

जठै री वठै ठैहरयोड़ी

थाणा थरप।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली तिमाही पत्रिका ,
  • सिरजक : चेतन स्वामी ,
  • संपादक : श्याम महर्षि