मायड़ भासा बोलतां

जिण नै आवै लाज,

इस्या कपूतां स्यूं दुखी

आखो देस समाज,

निज रै छप्पन भोग नै

बिसरावै या फूट,

तिसणावश खांता फिरै

जणै जणै री जूंठ

निज भासा स्यूं अणमणा

पर भासा स्यूं प्रीत,

इसड़ा नुगरां री करै

कुण जग में परतीत?

भरो सांग मन भांवता

पण त्यो थे मांड,

जका भेस भासा तजै

बां नै कैवै भांड,

थे मरुधर रा बाजस्यो

बसो कठै ही जाय,

सैनाणी कोनी धुपै

बिरथा लाख उपाय,

निज सरूप स्यूं थे डरो

थांरो घणो अभाग,

निज रो आपो ओळखो

हीण-भावना त्याग,

महापुरूष गांधी करी

गुजराती री सेव,

बंगला थरपी जगत में

रवि ठाकुर गुरूदेव,

मत ल्यो निरथक तरक कर

हिन्दी रो ओळाव,

भासावां सगली नदयां

हिन्दी है दरियाव,

बीत्यां जावै बगत तो

पण चालैली बात,

सरवस जावै, सांभळो

थांरा लांबा हाथ।

स्रोत
  • पोथी : कन्हैयालाल सेठिया समग्र ,
  • सिरजक : कन्हैया लाल सेठिया ,
  • संस्करण : प्रथम