थारी निजरां मांय

म्हैं हूं फकत

तिरणो पगडांडी रो

कै पछै ठीकरी रस्तै री

आवतो-जावतो

थूं कुचळतो रैयो म्हनै

आपरी पगतळियां सूं

म्हैं थारी ठोकरां नै

करतो रैयो सहन

इण आस मांय

कै थूं कदै तो करैला

म्हारी अर म्हारै

आतम-अभिमान री कदर

म्हैं जोवूं बाट

कै थारी निजरां

बदळ जावै म्हारै पाण

मौको है सुधरण रो भाइड़ा!

इण सूं पैली

कै तिरण रो भारत मच जावै

कै पछै ठीकरी

घड़ो फोड़ देवै।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : दशरथ कुमार सोलंकी ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : मरुभूमि सोध संस्थान राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़