म्हैं उडंणी चावूं

इण छेड़ै सूं उण छेड़ै

जठै बाथां भरलै समंदर

इण आभै नैं

म्हैं बधणी चावूं

इतरौ डीगो कै

हाथां सूं तोड़ लूं तारा

अर भर लूं खूंजौ

म्हैं गमणी चावूं

रळ जाणी चावूं

बीज री गळांई

धरती मांय

कै बण सकूं अेक बिरछ

फैल सकूं घेर-घुमेर

धरती रै चौफेर

पसार सकूं-हेत री छियां।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली लोक चेतना री राजस्थानी तिमाही ,
  • सिरजक : वाज़िद अली ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य-संस्कृति पीठ