बे रुत की बरसावै क्यूं छै।

धीजो दे, धमकावै क्यूं छै॥

ओळा अंधड़, धूळ दफाणी,

करसां नैं कळपावै क्यूं छै।

गणगौर्'या पर दही धमोड़ा,

तीजां नैं तरसावै क्यूं छै।

नेक चलणिया, फिरै नागड़ा,

भूण्डा नैं बगसावै क्यूं छै।

आछ्या दिन अबकै आवेला,

भोळा नैं भरमावै क्यूं छै।

आंधा आंधा भिड़ आपस में,

आंधा नै उकसावै क्यूं छै।

'चंचल' चतर बणै मत ज्यादा,

चुप रह नैं बरड़ावै क्यूं छै॥

स्रोत
  • सिरजक : प्रहलाद कुमावत 'चंचल' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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