म्हैं सुणी थूं

जलम्यौ इण धरती रै साथै

अर देख्या हा

जुगा आंवता-जांवता,

थनै घणो इज

गाइज्यो-मांडिज्यौ,

म्हैं सुणी थारी किरणा माथै

इमरत चौंवतौ बतावै

थन्नै देख नै हिवड़ै रम्यौ

उणियारो चेतै आवै,

भूखौ थन्नै आभै टंग्यौड़ी

सुथरी रोटी बातवै,

सगळा आप सारु थन्नै समझै

अर दूजा समझावै,

अगूणी दीख सूं मुळकता चांद

हम्मे थूं बता-

थूं कुण, अर किकर?

म्हैं चांद हूं

बस चांद ईज हूं,

पीड़ रौ सागर हूं

चांद जेड़ौ मुंडो बता नै

ठग्यौड़ी नारी री पीड़,

भूख सूं बिलबिलांवतां

टाबरियां री पीड़,

म्हनै देख, तड़फतै

प्रेम्यां री पीड़,

इण सब रै ऊपरां

पाणी तरसतै,

पग-पग री ठोकर खांवतै

उण पग नै सहलावतै,

ढोर सूं कमती गिणीजतै,

बेदाग पण नफरत रै सिकार

रौंवतै, बिलखतै, तड़फतै,

तबकै री इतिहासूं सदियां री पीड़,

और अणगिणत दुख लुकायां हूं,

थूं जाणै कांई, विवेक!

म्हनै सगळा

मन जच्यौ ही समझ्यो

पण समझ्या नी,

म्हैं पीड़ रौ सागर हूं

पीड़ छळकै,

वा है म्हारी किरणा री

ठंडक रौ राज॥

स्रोत
  • पोथी : साहित्य बीकानेर ,
  • सिरजक : विवेकदीप बौद्ध ,
  • संपादक : देवीलाल महिया ,
  • प्रकाशक : महाप्राण प्रकाशन, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम