फूटरी फरी

जूण नैं रुळायां बगै

धरा-धूड में रे बावळा बटाऊ

कीं पांवडा तो में'ल धक्कै

थोड़ो सो सरी

भेळो तो कर आतमबळ

कर हेलो दसूं दिसावां नैं

ताकड़ी रै तोल

मिल्या है मूंघा

मोती सा खिण

जिका बगायां जावै

सुगन-सिरधा रै डर सूं

अडिग अर काळजै आळा

मिनखां बदळी है

बगत री अटल दिसावां

जाणतां थकां

थूं डरपै बावळा

पग उठा, चाल

आपां आभो मिणां।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 7 ,
  • सिरजक : अशोक परिहार 'उदय' ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
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