सोचूं तो म्हूं कतरो सोचूं,
सार कोयनी पचबा में।
बतळा ब्रह्मा कतरी बेळ्यां
लागी नारी रचबा में?
या फुरसत री रचना थारी,
न्यारो रूप-विधान है।
पाँच तत्व री या पुतली पण,
चौसठ-कला-निधान है॥
इण री काया सामै फीका,
सगळा मान-गुमान है।
इण री माया सामै फीका,
विद्वानां रा ज्ञान है॥
गूढ़ अरथ री पोथी पूरी,
घणी कठिन या बँचबा में।
बतळा ब्रह्मा कतरी वेळ्यां
लागी नारी रचवा में?
मदमाता नैणां सूं निरखै,
नत मोरयां का नाच नै।
चड़ा-चड़ी पर तोता-मैना,
जद्यां लड़ावै चाँच ने॥
सोळा जद सिणगार करै या,
कियां छिपाऊँ साँच ने।
निरखै खुद को रूप जद्यां या,
तड़का देवै काच ने।
बगत बदोतर लगै मिनख सूं,
इण रो फोटू खँचबा में।
बतळा ब्रह्मा कतरी बेळ्यां,
लागी नारी रचबा में?
कायण सब इण रूप-कळा पै,
तन री रीत रसाण पै।
इण रे पाछे चाल्या खंजर,
चढग्या तीर कबाण पै।
संतां रो तक सत डोल्यो है,
जद आई या ताण पै।
पाका लोहा पाण उतरजा,
चढ़-चढ़ ज्यूं कुरसाण पै॥
महाकाव्य-इतिहास रच्या सब,
इण री कळा समझबा में।
बतळा ब्रह्मा कतरी बेळ्यां,
लागी नारी रचबा में॥
ब्रह्मा थारा सव अनुभव रो,
या नारी अवतार है।
धरम-करम सब लाज शरम रो,
या पूरो संसार है॥
या ही सरगम, राग-रंग सब,
रिश्ता, तीज तुंवार है।
खेती-बाड़ी, बणज, चाकरी,
मूळ व्याज रो सार है।
या ही सगळो मूळ बचत रो,
या ही मूळ खरचबा में।
बतळा ब्रह्मा कतरी बेळ्यां,
लागी नारी रचवा में?