सुणो हो के!

राजू भायो

कमर बाँधकर

काळै धन नैं

गोरो करसी;

स्याणी!

जणाँ-ईं

कोई

राम-राम करतां

अैं घर की

नसल को

डोळ सुधरसी।

स्रोत
  • पोथी : सुण स्याणी ,
  • सिरजक : भगवती प्रसाद चौधरी ,
  • प्रकाशक : रसकलश प्रकाशन
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