ग्यान धरम तो खूट्याँ धर दी

म्हांकी संस्कृति पै पालो पड़ग्यो

बेटा बेटी में कर्यो आंतरो

मिनखाई नै मनख चरग्यो

बेटी ने पेट में मारबा को

यो कांई चलन खड ग्यो

मनख क्यूं बेटी नै मार रई छै

प्रीत गैल तो सकड़ी होगी

कन्यादान ख्याण्याँ होगी

बेटा की चाहत में देखो

बेबस कोराझयाँ-भोराण्याँ होगी

रेवड़ी पै बेटी ने फांकबा भागऱ्या छै।

मनख क्यूं बेटी नै मार रयो छै

कलश आरत्या सूना होग्या

बाबल का घर कूला होग्या।

स्रोत
  • पोथी : भात-भांत का रंग ,
  • सिरजक : कमला कमलेश ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन