हरेक रात

फेरूं वै इज सपना,

हरेक रात

फेरूं वौ इज झुरणौ,

दिनूगै

फेरूं यूं इज दौड़णौ,

आथड़णौ, पड़णौ, हांफणौ!

सिंझ्या री बेळा

फेरूं वै इज खाली हाथ

खाली आंख्यां

खाली-खाली, सूनौ-सूनौ मनड़ौ!

करां तौ कांई करां

चालौ

कोई लोटरी रौ नम्बर भरां

भरम सूं

फेरूं जीव नै राजी करां

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : बी. आर. प्रजापति ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी